सिनेमा का रंगीन सफर: 1993 की अनोखी फिल्म “आँखें”: जब बंदर था हीरो और हँसी के ठहाके लगाता था!

90 का दशक हिंदी सिनेमा के लिए सुनहरा दौर था और इस दौर में कई बेहतरीन फिल्में रिलीज हुईं, जिनमें से एक थी “आँखें” (1993)। डेविड धवन द्वारा निर्देशित और अनीस बज़्मी द्वारा लिखित इस फिल्म ने दर्शकों को कॉमेडी, थ्रिल और इमोशन का एक अनूठा मिश्रण पेश किया।

सिनेमा का रंगीन सफर: 1993 की अनोखी फिल्म “आँखें”: जब बंदर था हीरो और हँसी के ठहाके लगाता था!

कहानी और किरदारों का अनोखा मेल:

फिल्म दो भाइयों, मुन्नू (गोविंदा) और बन्नू (चंकी पांडे), की कहानी बताती है, जो अपनी शरारतों और हास्यास्पद मज़ाक के लिए जाने जाते हैं। मुन्नू एक चालाक और चतुर कॉन मैन है, जबकि बन्नू भोला और सीधा है। उनके जीवन में तब उथल-पुथल मच जाती है जब एक प्रैंक गलत हो जाता है और बन्नू लापता हो जाता है। मुन्नू खुद को मुख्य संदिग्ध के रूप में पाता है और उसे अपने भाई को खोजने और अपना नाम साफ करने की चुनौती का सामना करना पड़ता है।

इस यात्रा के दौरान, मुन्नू को कई रोमांचक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, उसका प्यार और नुकसान मिलता है, और वह अपने अतीत के भूतों का सामना करता है। इन सबके बीच, फिल्म में एक अनोखा किरदार भी शामिल है, जो कहानी में एक अलग ही रंग भर देता है – मुन्नू का पालतू बंदर!

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बंदर: फिल्म का असली हीरो!

मुन्नू का बंदर फिल्म का असली हीरो बन जाता है। वह न केवल कॉमेडी के दृश्यों में हँसी के ठहाके लगाता है, बल्कि कई महत्वपूर्ण परिस्थितियों में मुन्नू की मदद भी करता है। बंदर को इतनी कुशलता से प्रशिक्षित किया गया है कि वह एक अनुभवी अभिनेता की तरह ही अपने किरदार को निभाता है।

सिनेमा का रंगीन सफर: 1993 की अनोखी फिल्म “आँखें”: जब बंदर था हीरो और हँसी के ठहाके लगाता था!

फिल्म के निर्देशक डेविड धवन ने एक साक्षात्कार में बताया था कि बंदर को प्रशिक्षित करने में लगभग एक साल का समय लगा। उन्होंने यह भी कहा कि बंदर इतना बुद्धिमान था कि वह निर्देशों को समझता था और उन्हें आसानी से पूरा कर लेता था। बंदर की उपस्थिति ने फिल्म में एक हास्य और आकर्षण का एक नया आयाम जोड़ा।

Image Courtesy – Bollywood Hungama

बताया गया है कि यह फिल्म 1977 की कन्नड़ फिल्म किट्टू पुट्टू से प्रेरित थी, जो 1967 की तमिल फिल्म अनुबवी राजा अनुबवी से प्रेरित थी, जिसे पहले 1973 में दो फूल के रूप में हिंदी में बनाया गया था। यह भी 1990 में रिलीज हुई मराठी फिल्म चांगु मंगू से लिया गया है।

बॉक्स ऑफिस पर सफलता और रोचक तथ्य:

“आँखें” बॉक्स ऑफिस पर एक बड़ी सफलता थी। इसने लगभग ₹35 करोड़ का कलेक्शन किया, जो उस समय के लिए एक बड़ी राशि थी। फिल्म अपने संगीत के लिए भी सराही गई, जिसमें “ओ लाल दुपट्टे वाली” और “अंगना में बाबा” जैसे लोकप्रिय गाने शामिल थे।

फिल्म के कुछ रोचक तथ्य:

  • फिल्म का बजट लगभग 6 करोड़ था।
  • फिल्म की शूटिंग मुख्य रूप से मुंबई और गोवा में हुई थी।
  • फिल्म के गीतों को बप्पी लाहिरी ने संगीतबद्ध किया था और इंदीवर ने लिखा था।
  • फिल्म को तीन फिल्मफेयर पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया था, जिसमें सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ कॉमेडी, और सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता (गोविंदा) शामिल थे।
  • इसे तेलुगु में पोकिरी राजा (1995) के नाम से बनाया गया था।

“आँखें” एक मनोरंजक और मजेदार फिल्म है जो आपको हँसाएगी, रोएगी, और आपको सोचने पर मजबूर करेगी। यह 90 के दशक की सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्मों में से एक है और आज भी दर्शकों को मंत्रमुग्ध करती है। फिल्म की सबसे बड़ी खासियत उसका अनोखा हीरो- बंदर- है, जिसने अपनी अदाकारी से दर्शकों का दिल जीत लिया।

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